Tuesday, November 2, 2010

जनता की हुंकार

चीख नहीं है,शोर नहीं है 
यह तो क्रोधित ललकार है 
जिसका कोई तोड़ नहीं है ,
यह वो प्रचंड हुंकार है ,

जनता ना अब रुकने वाली ,
निहथी ही करती वार है ,
इसके आगे न टिकने वाली ,
सिक्कों की ये सरकार है 

चेहरे का तो तेज प्रखर है 
आँखों में खून उतर आया हो 
मस्तक जलता की जैसे ज्वर है 
जैसे खुद सूरज का साया हो 

तीन रंग में रंगने को 
आतुर जनता अब न सुनने वाली 
कारवां अब चला ये बढ़ने को 
अब ये पताका न झुकने वाली 

न शिव का त्रिशूल हाथ में,
न अर्जुन का गांडीव है 
इन्द्र का वज्र न साथ में 
यह तो पशुराम का तांडव है 

शिव का तीसरा नेत्र यही है 
प्रलय का है आभास यही 
आततायिओं के रक्त बिना 
बुझने वाली ये प्यास नहीं 

अब बहेंगी रक्त की तेज़ धाराएँ 
खेतों को लहू से सींचा जाएगा 
उस फसल से निकली रोटियों को 
अधम-चिताओं पर सेका जाएगा 

होलिका तो बहुत जलाली हमने ,
अब यह सरकार जलाई जाएगी 
देश हर गली मोहल्ले में 
यह जीत की राख उड़ाई जाएगी 
परलय का अब अंदेसा पक्का है 
कुछ भी हो यह सरकार गिराई जाएगी .

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